Moral Development Theory of Kohlberg | कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत | 2024

कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत (Moral Development Theory of Kohlberg)) – लॉरेंस कोहलबर्ग अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे। इनका जन्म 25 अक्टूबर 1927 को हुआ था । वह शिकागो विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे ।  लारेंस कोलबर्ग (Lawrence Kohlberg) जीन पियाजे से प्रभावित होकर नैतिक विकास का सिद्धांत दिया। 

Moral Development Theory of Kohlberg | कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत

“नैतिकता (Morality) वह नियम है जो समाज के द्वारा बनाए जाते हैं या अर्जित किए जाते हैं यह समाज व वातावरण के अंतः क्रिया का परिणाम है।”

कोहलबर्ग ने नैतिक विकास की तीन अवस्थाएं बताएं जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. पूर्व परंपरागत स्तर (Pre Conventional Stage)
  2. परंपरागत स्तर (Conventional Stage)
  3. उत्तर परंपरागत स्तर (Post Conventional Stage)

1- पूर्व परंपरागत स्तर (Pre-Conventional Stage) –

जब बालक किसी बाहरी तत्व या किसी भौतिक घटना के संदर्भ में किसी आचरण को नैतिक अभाव अनैतिक मानता है तो उसकी नैतिक तर्क शक्ति पूर्व परंपरागत स्तर की कहीं जाती है कोहल वर्ग ने इसको दो स्तरों में विभाजित किया है –

A-आज्ञा व दंड की अवस्था (Order and Punishment Stage)-

इस अवस्था में बालक का चिंतन दंड से प्रभावित रहता है। जैसे कोई बालक अगर कार्य नहीं करता है तो जब उसे डांट पड़ती है तो डांट से बचने के लिए वह आज्ञा का पालन करता है। अतः दंड नैतिकता का मुख्य आधार होता है।

B-अहंकार की अवस्था (Ego Stage)-

इस अवस्था में बालक के चिंतन का स्वरूप बदल जाता है वह अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं को समझने लगता है। इस अवस्था में अगर बालक का उद्देश्य झूठ बोलने से पूरा होता है तो वह झूठ बोलता है और इन क्रियाओं को वह आचरण मानता है।

पूर्व परंपरागत स्तर पर बालक आत्म केंद्रित रहता है क्योंकि वह स्वहित की दृष्टि से ही नैतिक व्यवहार करता है तथा दंड से बचता है।

2- परंपरागत स्तर (Conventional Stage)-

इस अवस्था में नैतिक मूल्य अच्छे व बुरे कार्यों में निहित रहते हैं  तथा बालक वह सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने में रुचि लेता है।

A-प्रशंसा की अवस्था (Stage of Appreciation) –

  • इस अवस्था में बालक जो भी कार्य करता है उस कार्य के लिए प्रशंसा की अपेक्षा रखता है।
  • इस अवस्था में बालक उन्ही व्यवहारों को उचित मानते हैं जिनके लिए भी परिवार स्कूल मित्र पड़ोस आदि से प्रशंसा पाते हैं।

B-सामाजिक व्यवस्था के सम्मान की अवस्था (Stage of Respect for Social System) –

  • स्वयं की पहचान स्थापित करने के लिए कार्य करता है।
  • सम्मान की प्राप्ति हेतु कार्य करता है।
  • अच्छे व नैतिक कार्यों को महत्व देता है।

3- उत्तर परंपरागत स्तर (Post-Conventional Stage)-

नैतिक विकास की इस तृतीय तथा सर्वोच्च स्तर पर बालक और नैतिक मूल्यों तथा नैतिक सिद्धांतों को परिभाषित करने का स्पष्ट प्रयास करने लगता है जिनकी सामाजिक दृष्टि से वैधता या उपयोगिता होती है। इस अवस्था में बालक बह्य केंद्रित हो जाता है तथा वह निष्पक्ष भाव से अन्य व्यक्तियों के संबंध में विचार व्यक्त करने की योग्यता विकसित कर लेता है।

A-सामाजिक अनुबंध (Social Contract) –

  • मजबूती से सामाजिक नियमों का पालन करता है।
  • उसे डर रहता है कि समाज के साथ समझौता टूट ना जाए।
  • यह नियम समझने लगता है कि समाज के बनाए नियम में बदलाव हो सकते हैं।

B-सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत (Universal Ethic) –

  • अपने विवेक का प्रयोग करता है।
  • समाज के प्रचलित नियमों में भागीदार होता है और उसमें अपनी बीवी का अनुसार बदलाव करता है।

 

कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत की आलोचना 

Kohlberg के सिद्धांत ने नैतिक विकास के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन कुछ आलोचनाएं भी हुई हैं। कुछ आलोचकों का मानना है कि यह सिद्धांत पश्चिमी संस्कृति के लिए अधिक उपयुक्त है और अन्य संस्कृतियों में लागू नहीं हो सकता है। इसके अलावा, कुछ आलोचकों ने यह भी कहा है कि यह सिद्धांत केवल पुरुषों के नैतिक विकास पर आधारित है और महिलाओं के नैतिक विकास को पर्याप्त रूप से नहीं समझता है।

 


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