अभिप्रेरणा | Motivation

अभिप्रेरणा | Motivation – “बिना किसी कार्य को प्रारंभ करें जारी रखें अथवां नियंत्रित करने की प्रक्रिया है ।”

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अभिप्रेरणा | Motivation

अभिप्रेरणा | Motivation – “अभिप्रेरणा वह आंतरिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति को किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है, उसका मार्गदर्शन करती है और उसे उस कार्य में निरंतर बनाए रखती है।”

यह किसी उद्देश्य को प्राप्त करने की इच्छा, उत्साह, या ज़रूरत से उत्पन्न होती है। इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब कोई व्यक्ति किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत करता है, तो उसके पीछे जो बल होता है, वही अभिप्रेरणा है।

उदाहरण:

  • कोई छात्र अच्छे अंक लाने के लिए कड़ी मेहनत करता है — उसकी प्रेरणा हो सकती है: पुरस्कार, प्रशंसा या बेहतर भविष्य।
  • कोई खिलाड़ी जीतने के लिए कठिन प्रशिक्षण लेता है — उसकी प्रेरणा हो सकती है: सफलता की चाह, देश के लिए खेलने का गर्व।

अगर आप इसे किसी विशेष क्षेत्र (जैसे शिक्षा, प्रबंधन या मनोविज्ञान) में समझना चाहते हैं, तो मैं उसे भी विस्तार से समझा सकता हूँ।

अभिप्रेरणा के मुख्य स्रोत

  • आवश्यकताएं (Needs)
  • चालक (Drive)
  • उद्दीपन (Incentive)
  • प्रेरक (Motive)

मास्लो द्वारा प्रस्तुत अभिप्रेरणा का वर्गीकरण

1- जन्मजात

  • भूख,
  • काम (sex),
  • प्यास,
  • निद्रा,
  • आराम,
  • प्रेम,
  • क्रोध,
  • मल-मूत्र विसर्जन 

2-अर्जित प्रेरणा

  • आदत संबंधी व्यवहार मादक सेवन
  • जीवन लक्ष्य डॉक्टर नेता आदि बनने की इच्छा
  • अभिरुचि पढ़ना लिखना गाना खेलना
  • अचेतन इच्छाएं
  • अभिवृत्ति (Attitude)

3- सामाजिक प्रेरणा

  • सामुदायिकता
  • स्वाग्रह / आत्म स्थापना
  • संग्रहशीलता
  • युद्ध प्रवृत्ति / युयुत्सा

अभिप्रेरणा के सिद्धांत एवं उसके प्रतिपादक


1-क्षेत्र सिद्धांत / वातावरणीय सिद्धांत – कर्ट लेविन

क्षेत्र सिद्धांत (Field Theory) / वातावरणीय सिद्धांत कर्ट लेविन (Kurt Lewin) द्वारा प्रतिपादित एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है, जो व्यक्ति के व्यवहार को समझने में मदद करता है।

क्षेत्र सिद्धांत की परिभाषा (Definition of Field Theory):

“व्यवहार (Behavior) किसी व्यक्ति (Person) और उसके वातावरण (Environment) के बीच पारस्परिक संबंध का परिणाम होता है।”

कर्ट लेविन के अनुसार:

B=f(P,E)B = f(P, E)

जहाँ:

  • B = Behavior (व्यवहार)
  • P = Person (व्यक्ति)
  • E = Environment (पर्यावरण)
  • और यह “f” दर्शाता है कि व्यवहार, व्यक्ति और पर्यावरण का एक क्रियात्मक फलन है।

मुख्य बिंदु (Key Points):

  1. व्यवहार का संदर्भ: व्यक्ति का व्यवहार केवल उसकी आंतरिक इच्छाओं या गुणों से नहीं, बल्कि उस समय के “समग्र क्षेत्र” से प्रभावित होता है, जिसमें वह स्थित है।
  2. जीवित क्षेत्र (Life Space): कर्ट लेविन ने व्यक्ति के संपूर्ण मानसिक, सामाजिक और भौतिक वातावरण को “Life Space” कहा।
    इसमें व्यक्ति की इच्छाएँ, लक्ष्य, डर, जरूरतें और आसपास के सामाजिक कारक शामिल होते हैं।
  3. गतिक शक्ति (Dynamic Forces): व्यक्ति की प्रेरणा विभिन्न “बलों” का परिणाम होती है जो उसे किसी कार्य की ओर खींचते या दूर करते हैं। जैसे – सकारात्मक बल प्रेरित करते हैं, नकारात्मक बल रोकते हैं।
  4. वर्तमान पर बल: लेविन का मानना था कि व्यवहार को समझने के लिए “वर्तमान” स्थिति सबसे महत्वपूर्ण है, न कि केवल अतीत या भविष्य।

उदाहरण:

मान लीजिए एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहा है:

  • उसका व्यक्तिगत तत्व (P): उसकी मेहनत, इच्छाशक्ति, रुचि।
  • उसका पर्यावरणीय तत्व (E): अभिभावकों का दबाव, शिक्षक का समर्थन, समय की कमी।

इन दोनों के संयुक्त प्रभाव से ही उसका व्यवहार (B) यानी पढ़ाई करने की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

 


 

2- मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत (Theory of Instincts) —

यह सिद्धांत प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम मैकडूगल (William McDougall) द्वारा प्रतिपादित किया गया था।

परिभाषा:

“मूल प्रवृत्तियाँ (Instincts) व्यक्ति के स्वाभाविक, जन्मजात और स्वतः प्रेरित व्यवहार की वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो किसी विशेष उद्दीपन (stimulus) के प्रति विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं।”

मैकडूगल के अनुसार, मानव व्यवहार का मूल आधार उसकी जैविक प्रवृत्तियाँ होती हैं। इन्हीं प्रवृत्तियों से प्रेरणा (motivation) उत्पन्न होती है।

मुख्य बिंदु (Key Points):

  1. जन्मजात (Innate): मूल प्रवृत्तियाँ जन्म से ही व्यक्ति में विद्यमान होती हैं, इन्हें सिखाया नहीं जाता।
  2. सामान्य व्यवहार का आधार: मैकडूगल ने कहा कि मनुष्य के अधिकांश कार्य इन्हीं प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर होते हैं।
  3. तीन घटक: प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के तीन भाग होते हैं:
    • ज्ञानात्मक (Cognitive): किसी वस्तु या उद्दीपन की पहचान।
    • भावनात्मक (Emotional): उस उद्दीपन के प्रति भावना उत्पन्न होना।
    • क्रियात्मक (Conative): उस भावना के अनुरूप कार्य करना।

मैकडूगल द्वारा वर्णित कुछ प्रमुख मूल प्रवृत्तियाँ:

प्रवृत्ति संबंधित भावना
आत्मरक्षा (Self-assertion) क्रोध
अनुकरण (Imitation) अपनापन
जिज्ञासा (Curiosity) आश्चर्य
निर्माण (Constructiveness) रचनात्मकता
संतान प्रेम (Parental instinct) ममता
डर (Fear) भय
संघर्ष (Combat) आक्रोश
भोजन (Hunger) भूख

उदाहरण:

अगर कोई व्यक्ति अचानक किसी खतरनाक जानवर को देखता है, तो वह बिना सोचे-समझे भागता है — यह आत्मरक्षा की मूल प्रवृत्ति का कार्य है।

आलोचना:

  • मैकडूगल ने शुरुआत में 14 मूल प्रवृत्तियों का उल्लेख किया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 18 किया गया।
  • इस सिद्धांत की आलोचना यह कहकर की गई कि यह अत्यधिक जैविक दृष्टिकोण है और सामाजिक, मानसिक और पर्यावरणीय कारकों की उपेक्षा करता है।

 


3- प्रणोद न्यूनता सिद्धांत – Clark Hull (1943)

परिभाषा:

“प्रेरणा व्यक्ति के भीतर उत्पन्न किसी जैविक आवश्यकता (जैसे – भूख, प्यास, नींद) से उत्पन्न तनाव (drive) को कम करने की प्रवृत्ति है। यह तनाव कम करना ही व्यक्ति के व्यवहार की प्रेरणा बनता है।”

Hull के अनुसार:

∗∗सभीव्यवहारोंकाउद्देश्यजैविकसंतुलन(Homeostasis)कोबनाएरखनाहोताहै।∗∗**सभी व्यवहारों का उद्देश्य जैविक संतुलन (Homeostasis) को बनाए रखना होता है।**

मुख्य घटक (Key Concepts):

  1. Need (आवश्यकता):
    शरीर की कोई जैविक कमी, जैसे भोजन या पानी की जरूरत।
  2. Drive (प्रणोद):
    जरूरत पूरी न होने पर शरीर में उत्पन्न होने वाला आंतरिक तनाव या प्रेरक बल।
  3. Behavior (व्यवहार):
    वह क्रिया जो व्यक्ति उस तनाव को कम करने के लिए करता है।
  4. Drive Reduction (प्रणोद न्यूनता):
    जरूरत पूरी होते ही तनाव कम हो जाता है — यही संतोष या प्रेरणा की पूर्ति कहलाती है।

Hull का सूत्र (Hull’s Formula):

Hull ने एक गणितीय मॉडल भी प्रस्तावित किया:

E=H×D\text{E} = \text{H} \times \text{D}

जहाँ:

  • E = Excitatory Potential (व्यवहार करने की संभावना)
  • H = Habit Strength (आदत की शक्ति)
  • D = Drive (प्रणोद का स्तर)

व्यवहार तभी होगा जब आदत और प्रणोद दोनों मौजूद हों।

उदाहरण:

  • किसी व्यक्ति को भूख लगी है (Need) → भूख से तनाव उत्पन्न होता है (Drive) → वह खाना खोजता है और खाता है (Behavior) → भूख शांत होती है (Drive Reduced)।

विशेषताएँ:

  • यह सिद्धांत शारीरिक आवश्यकताओं पर केंद्रित है।
  • यह मानता है कि सभी प्रेरित व्यवहार का उद्देश्य है: तनाव को कम करना।
  • इसे “यांत्रिक दृष्टिकोण (mechanistic approach)” भी कहा जाता है, क्योंकि यह प्रेरणा को एक जैविक प्रक्रिया के रूप में देखता है।

आलोचना:

आलोचना विवरण
मानव व्यवहार अधिक जटिल है सभी व्यवहार जैविक जरूरतों से प्रेरित नहीं होते — जैसे किसी कार्य को आनंद के लिए करना।
अंतर्नोद प्रेरणा की अनदेखी यह सिद्धांत आत्म-प्रेरणा या रचनात्मकता जैसे कारकों को नहीं समझा पाता।
सामाजिक और भावनात्मक कारकों की उपेक्षा जैसे प्यार, उपलब्धि, या पहचान जैसी प्रेरणाएँ इसमें शामिल नहीं हैं।

सारांश:

प्रणोद न्यूनता सिद्धांत यह कहता है कि:

“व्यक्ति तब तक सक्रिय रहता है जब तक उसकी शारीरिक आवश्यकता पूरी नहीं हो जाती। आवश्यकता की पूर्ति के बाद प्रणोद खत्म हो जाता है और व्यवहार बंद हो जाता है।”

बिलकुल! आइए विस्तार से समझते हैं — अंतर्नोद सिद्धांत (Intrinsic Motivation Theory)


 

4- अंतर्नोद सिद्धांत (Intrinsic Motivation Theory)

परिभाषा:

“जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को केवल उस कार्य की रुचि, आनंद, या आंतरिक संतोष के लिए करता है — न कि किसी बाहरी इनाम, दबाव या दंड के कारण — तो इसे अंतर्नोद (Intrinsic Motivation) कहते हैं।”

यह प्रेरणा व्यक्ति के भीतर से आती है, न कि बाहर से।

मुख्य विचार:

अंतर्नोद सिद्धांत का विकास कई मनोवैज्ञानिकों ने किया है, विशेषकर:

  • ए. टी. पी. लियोनार्ड (A.T.P. Leonard)
  • डेसी और रयान (Deci & Ryan) – इन्होंने स्व-निर्धारण सिद्धांत (Self-Determination Theory) के अंतर्गत इसे और स्पष्ट किया।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. स्वाभाविक प्रेरणा:
    व्यक्ति खुद से प्रेरित होता है — जैसे कोई बच्चा बिना कहे खेलता है या चित्र बनाता है।
  2. बाहरी पुरस्कार की आवश्यकता नहीं:
    कार्य खुद ही आनंददायक लगता है।
  3. रचनात्मकता और सीखने की जिज्ञासा:
    ऐसे कार्य जो नई चीज़ें सिखाते हैं या सोचने को प्रेरित करते हैं, अंतर्नोद से अधिक प्रेरित होते हैं।

डेसी और रयान के अनुसार, अंतर्नोद के 3 मूल तत्व (Self-Determination Theory):

तत्व विवरण
स्वायत्तता (Autonomy) व्यक्ति को यह महसूस हो कि वह अपने निर्णय स्वयं ले रहा है।
दक्षता (Competence) यह अनुभव कि वह कार्य को अच्छे से कर सकता है।
संबद्धता (Relatedness) दूसरों से जुड़ाव या संबंध महसूस करना।

उदाहरण:

कार्य अंतर्नोद का कारण
एक छात्र शौक से विज्ञान पढ़ता है विषय में गहरी रुचि
कोई कलाकार रोज़ चित्र बनाता है कला से आनंद
कोई बच्चा खेल में खो जाता है खेल से मिलने वाला उत्साह

बाह्य प्रेरणा से अंतर (Intrinsic vs Extrinsic Motivation):

अंतर अंतर्नोद बाह्य प्रेरणा
प्रेरणा का स्रोत व्यक्ति के भीतर से बाहर से (इनाम, दबाव)
उद्देश्य संतोष, रुचि, आनंद पुरस्कार, अंक, प्रशंसा
उदाहरण शौक के लिए गिटार बजाना प्रतियोगिता जीतने के लिए गिटार बजाना

महत्त्व (Importance):

  • यह स्थायी और गहरी प्रेरणा होती है।
  • सीखने में रचनात्मकता, आत्म-अनुशासन और खोज की भावना को बढ़ावा देती है।
  • शिक्षा और कार्यस्थलों में इसकी भूमिका बहुत बड़ी है।

 


प्रेरणा के अन्य प्रमुख सिद्धांत – सारणीबद्ध रूप में

क्र. सिद्धांत का नाम प्रतिपादक मुख्य विचार उदाहरण
5 मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत सिगमंड फ्रायड मानव व्यवहार अचेतन इच्छाओं, यौन और आक्रामक प्रवृत्तियों से प्रेरित होता है बच्चा गलत कार्य को छुपाता है क्योंकि उसमें अपराध-बोध होता है
6 आंतरिक प्रेरणा सिद्धांत हैरी हार्लो (Harry Harlow) जिज्ञासा, सीखने और खोज जैसी प्रेरणाएँ जैविक जरूरतों से स्वतंत्र होती हैं बंदर बिना इनाम के भी पहेली सुलझाते हैं
7 शरीर क्रिया सिद्धांत मॉर्गन शरीर की जैविक क्रियाएँ ही प्रेरणा का मूल स्रोत हैं भूख लगने पर शरीर में परिवर्तन होता है, जो खाने की प्रेरणा देता है
8 मांग / स्व-यथार्थीकरण सिद्धांत अब्राहम मस्लो प्रेरणा ज़रूरतों के क्रमबद्ध स्तरों से उत्पन्न होती है; सर्वोच्च स्तर: स्व-विकास कलाकार अपनी कला में आत्म-संतोष ढूंढता है
9 लक्ष्य आधारित सिद्धांत एडविन ए. लॉक (1968) स्पष्ट, कठिन लेकिन प्राप्त करने योग्य लक्ष्य प्रेरणा बढ़ाते हैं छात्र तय करता है कि वह महीने में 5 पाठ पूरे करेगा
10 निष्पत्ति प्रेरणा सिद्धांत मैग कीलीलैंड (McClelland) तीन प्रमुख सामाजिक आवश्यकताएँ: उपलब्धि, संबद्धता, और शक्ति व्यक्ति को प्रेरित करती हैं कोई छात्र टॉप करना चाहता है (उपलब्धि प्रेरणा)

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